Bhagavad Gita Chapter 1 Verse 20 — Meaning & Life Application
Sanskrit Shloka (Original)
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वजः | प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः | हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ||१-२०||
Transliteration
atha vyavasthitāndṛṣṭvā dhārtarāṣṭrān kapidhvajaḥ . pravṛtte śastrasampāte dhanurudyamya pāṇḍavaḥ ||1-20||
Word-by-Word Meaning
📖 Translation
1.20. Then, seeing the people of Dhritarashtra’s party standing arrayed and the discharge of weapons about to begin, Arjuna, the son of Pandu, whose ensign was a monkey, took up his bow and said the following to Krishna, O Lord of the earth.
।।1.20।।हे महीपते ! इस प्रकार जब युद्ध प्रारम्भ होने वाला ही था कि कपिध्वज अर्जुन ने धृतराष्ट्र के पुत्रों को स्थित देखकर धनुष उठाकर भगवान् हृषीकेश से ये शब्द कहे।
How to Apply This Verse in Modern Life
💼 At Work & Career
Before embarking on a major project, presenting to stakeholders, or negotiating a deal, thoroughly assess the situation, prepare your strategy and resources, and if appropriate, consult with experienced mentors or colleagues.
🧘 For Stress & Anxiety
When feeling overwhelmed by an impending challenge or crisis, take a conscious pause to observe the situation objectively, prepare your mental and emotional defenses, and seek guidance or support if needed, rather than reacting impulsively.
❤️ In Relationships
Prior to engaging in a difficult conversation or addressing a significant conflict, take time to understand the dynamics, prepare your communication thoughtfully, and approach the interaction with a readiness to engage constructively and perhaps seek mutual understanding or advice.
When to Chant/Recall This Verse
Solves These Life Problems
Key Message in One Line
“Before diving into significant challenges, pause to observe, prepare, and seek wisdom.”
🕉️ Council of Sages
Compare interpretations from revered Acharyas and scholars
🌍 English Interpretations
Swami Sivananda
1.20 अथ now? व्यवस्थितान् standing arrayed? दृष्ट्वा seeing? धार्तराष्ट्रान् Dhritarashtras party? कपिध्वजः monkeyensigned? प्रवृत्ते about to begin? शस्त्रसंपाते discharge of weapons? धनुः bow? उद्यम्य having taken up? पाण्डवः the son of Pandu? हृषीकेशम् to Hrishikesha? तदा then? वाक्यम् word? इदम् this? आह said? महीपते O Lord of the earth.No Commentary.
Shri Purohit Swami
1.20 Then beholding the sons of Dhritarashtra, drawn up on the battle- field, ready to fight, Arjuna, whose flag bore the Hanuman,
Dr. S. Sankaranarayan
1.20. O king! Then observing Dhrtarastra's men, arrayed when the armed clash had [virtually] begun, at that time, Pandu's son, the monkey-bannered one (Arjuna) raising his bow spoke these sentences.
Swami Adidevananda
1.20 Then Arjuna, who had Hanuman as his banner crest, on beholding the sons of Dhrtarastra in array, took up his bow, while missiles were beginning to fly.
Swami Gambirananda
1.20 O king, thereafter, seeing Dhrtarastra's men standing in their positions, when all the weapons were ready for action, the son of Pandu (Arjuna) who had the insignia of Hanuman of his chariot-flag, raising up his bow, said the following to Hrsikesa.
🇮🇳 Hindi Interpretations
Swami Chinmayananda
।।1.20।। इन डेढ़ श्लोकों में महाभारत युद्ध के नायक अर्जुन का युद्धक्षेत्र में प्रवेशवर्णन मिलता है। उसके प्रवेश का ठीक समय और ढंग भी इसमें अंकित किया गया है। अभी बाण युद्ध प्रारम्भ नहीं हुआ था किन्तु वह क्षण दूर भी नहीं था। युद्ध का वह सर्वाधिक तनावपूर्ण क्षण था। संकट अपने चरम बिन्दु पर पहुँच गया था। ऐसे समय कपिध्वज अर्जुन ने भगवान् श्रीकृष्ण से अपने रथ को उभय पक्ष के मध्य ले चलने का अनुरोध किया।प्राचीनकाल में युद्धभूमि पर प्रत्येक श्रेष्ठ योद्धा का अपना एक विशेष सुप्रसिद्ध चिह्नांकित ध्वज होता था। पताका को पहराते समय रथ में बैठेे रथी को शत्रु की पहचान होती थी। उस समय के नियमानुसार एक साधारण सैनिक सेनानायक पर बाण नहीं चला सकता था। प्रत्येक योद्धा अपने समकक्ष योद्धा के साथ ही युद्ध करता था। विशिष्ट चिह्न द्वारा किसी व्यक्ति को पहचानने की प्रथा आज भी युद्ध क्षेत्र में प्रचलित है। किसी उच्च अधिकारी के वाहन और गणवेश पर उसके परिचायक विशेष चिह्न अंकित होते हैं। अर्जुन के ध्वज का प्रतीक चिह्न कपि था।संजय द्वारा किये गये वर्णन से प्रतीत होता है कि अर्जुन धर्मयुद्ध को प्रारम्भ करने के लिये अधीर हो रहा था। उसने अपना धनुष उठा लिया था जिससे उसकी युद्धतत्परता का संकेत मिलता है।
Swami Ramsukhdas
।।1.20।। व्याख्या--'अथ'-- इस पदका तात्पर्य है कि अब सञ्जय भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुनके संवादरूप 'भगवद्गीता' का आरम्भ करते हैं। अठारहवें अध्यायके चौहत्तरवें श्लोकमें आये 'इति' पदसे यह संवाद समाप्त होता है। ऐसे ही भगवद्गीताके उपदेशका आरम्भ उसके दूसरे अध्यायके ग्यारहवें श्लोकसे होता है और अठारहवें अध्यायके छाछठवें श्लोकमें यह उपदेश समाप्त होता है। 'प्रवृत्ते शस्त्रसंपाते'-- यद्यपि पितामह भीष्मने युद्धारम्भकी घोषणाके लिये शंख नहीं बजाया था, प्रत्युत केवल दुर्योधनको प्रसन्न करनेके लिये ही शंख बजाया था, तथापि कौरव और पाण्डव-सेनाने उसको युद्धारम्भकी घोषणा ही मान लिया और अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र हाथमें उठाकर तैयार हो गये। इस तरह सेनाको शस्त्र उठाये देखकर वीरतामें भरकर अर्जुनने भी अपना गाण्डीव धनुष हाथमें उठा लिया। 'व्यवस्थितान् धार्तराष्ट्रान् दृष्ट्वा'-- इन पदोंसे सञ्जय-का तात्पर्य है कि जब आपके पुत्र दुर्योधनने पाण्डवोंकी सेनाको देखा, तब वह भागा-भागा द्रोणाचार्यके पास गया। परन्तु जब अर्जुनने कौरवोंकी सेनाको देखा, तब उनका हाथ सीधे गाण्डीव धनुषपर ही गया-- 'धनुरुद्यम्य'। इससे मालूम होता है दुर्योधनके भीतर भय है और अर्जुनके भीतर निर्भयता है, उत्साह है, वीरता है। 'कपिध्वजः'-- अर्जुनके लिये 'कपिध्वज' विशेषण देकर सञ्जय धृतराष्ट्रको अर्जुनके रथकी ध्वजापर विराजमान हनुमान्जीका स्मरण कराते हैं। जब पाण्डव वनमें रहते थे, तब एक दिन अकस्मात् वायुने एक दिव्य सहस्रदल कमल लाकर द्रौपदीके सामने डाल दिया। उसे देखकर द्रौपदी बहुत प्रसन्न हो गयी और उसने भीमसेनसे कहा कि 'वीरवर! आप ऐसे बहुत-से कमल ला दीजिये।' द्रौपदीकी इच्छा पूर्ण करनेके लिये भीमसेन वहाँसे चल पड़े। जब वे कदलीवनमें पहुँचे, तब वहाँ उनकी हनुमान्जीसे भेंट हो गयी। उन दोनोंकी आपसमें कई बातें हुईँ। अन्तमें हनुमान्जीने भीमसेनसे वरदान माँगनेके लिये आग्रह किया तो भीमसेनने कहा कि 'मेरे पर आपकी कृपा बनी रहे।' इसपर हनुमान्जीने कहा 'हे वायुपुत्र! जिस समय तुम बाण और शक्तिके आघातसे व्याकुल शत्रुओंकी सेनामें घुसकर सिंहनाद करोगे, उस समय मैं अपनी गर्जनासे उस सिंहनादको और बढ़ा दूँगा। इसके सिवाय अर्जुनके रथकी ध्वजापर बैठकर मैं ऐसी भयंकर गर्जना किया करूँगा, जो शत्रुओंके प्राणोंको हरनेवाली होगी, जिससे तुमलोग अपने शत्रुओंको सुगमतासे मार सकोगे' (टिप्पणी प0 17) । इस प्रकार जिनके रथकी ध्वजापर हनुमान्जी विराजमान हैं उनकी विजय निश्चित है। 'पाण्डवः'-- धृतराष्ट्रने अपने प्रश्नमें 'पाण्डवाः' पदका प्रयोग किया था। अतः धृतराष्ट्रको बार-बार पाण्डवोंकी याद दिलानेके लिये सञ्जय (1। 14 में और यहाँ) 'पाण्डवः' शब्दका प्रयोग करते हैं। 'हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते'-- पाण्डव-सेनाको देखकर दुर्योधन तो गुरु द्रोणाचार्यके पास जाकर चालाकीसे भरे हुए वचन बोलता है परन्तु अर्जुन कौरवसेनाको देखकर जो जगदगुरु हैं अन्तर्यामी हैं मन-बुद्धि आदिके प्रेरक हैं--ऐसे भगवान् श्रीकृष्णसे शूरवीरता, उत्साह और अपने कर्तव्यसे भरे हुए (आगे कहे जानेवाले) वचन बोलते हैं।
Swami Tejomayananda
।।1.20।।हे महीपते ! इस प्रकार जब युद्ध प्रारम्भ होने वाला ही था कि कपिध्वज अर्जुन ने धृतराष्ट्र के पुत्रों को स्थित देखकर धनुष उठाकर भगवान् हृषीकेश से ये शब्द कहे।
📜 Sanskrit Commentaries
Sri Madhavacharya
।।1.20।।Sri Madhvacharya did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.11.
Sri Anandgiri
।।1.20।।दुर्योधनादीनां धार्तराष्ट्राणामेवं भयप्राप्तिं प्रदर्श्य पार्थादीनां पाण्डवानां तद्वैपरीत्यमिदानीमुदाहरति अथेत्यादिना। भीतिप्रत्युपस्थितेरनन्तरं पलायने प्राप्तेऽपि वैपरीत्याद्व्यवस्थितानप्रचलितानेव परान्प्रत्यक्षेणोपलभ्य हनूमन्तं वानरवरं ध्वजलक्षणत्वेनादायावस्थितोऽर्जुनो भगवन्तमाहेति संबन्धः। किमाहेत्यपेक्षायामिदं वक्ष्यमाणं हेतुमद्वचनमित्याह वाक्यमिदमिति। कस्यामवस्थायामिदमुक्तवानिति तत्राह प्रवृत्त इति। शस्त्राणामिषुप्रासप्रभृतीनां संपातः समुदायस्तस्मिन्प्रवृत्ते। प्रयोगाभिमुखे सतीति यावत्। किं कृत्वा भगवन्तं प्रत्युक्तवानिति तदाह धनुरिति। महीपतिशब्देन राजा प्रज्ञाचक्षुः संजयेन संबोध्यते।
Sri Vallabhacharya
।।1.20 1.23।।अथ व्यवस्थितान् इत्यारभ्यभीष्मद्रोणप्रमुखतः 125 इत्यन्तम्। अथ युयुत्सूनवस्थितान् धार्तराष्ट्रान् वीक्ष्य कपिध्वजः स्वाश्रितजनपोषकं स्वसारथ्ये स्थितं हृषीकेशं जगाद यावदेतान् निरीक्षेऽहं तावत् उभयोः सेनयोर्मध्ये मम रथं स्थापयेति।
Sridhara Swami
।।1.20।। तस्मिन्समये श्रीकृष्णमर्जुनो विज्ञापयामासेत्याह अथेति चतुर्भिः। व्यवस्थितान्युद्धोद्योगेन स्थितान्। कपिध्वजोऽर्जुनः।