Bhagavad Gita Chapter 1 Verse 19 — Meaning & Life Application
Sanskrit Shloka (Original)
स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत् | नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलोऽभ्यनुनादयन् (or लोव्यनु) ||१-१९||
Transliteration
sa ghoṣo dhārtarāṣṭrāṇāṃ hṛdayāni vyadārayat . nabhaśca pṛthivīṃ caiva tumulo.abhyanunādayan (lo vyanu)||1-19||
Word-by-Word Meaning
📖 Translation
1.19. That tumultuous sound rent the hearts of (the members of) Dhritarashtra's party, making both the heaven and the earth resound.
।।1.19।।वह भयंकर घोष आकाश और पृथ्वी पर गूँजने लगा और उसने धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदय विदीर्ण कर दिये।
How to Apply This Verse in Modern Life
💼 At Work & Career
In a competitive professional environment, a clear, confident communication strategy and a unified team presence can project an image of unshakeable resolve. This assertive projection can demoralize competitors, secure stakeholder confidence, and rally your own team, much like the Pandava's powerful conch blasts. It emphasizes the importance of making a strong, impactful statement rather than a tentative one.
🧘 For Stress & Anxiety
Just as external 'tumultuous sounds' can profoundly affect one's mental state, this verse highlights the mind's vulnerability to overwhelming external pressures. It underscores the importance of cultivating inner resilience to prevent being 'rent' by demoralizing news, criticism, or stressful events. Understanding this psychological impact can help us prepare for or mitigate the effects of such 'sounds' in our lives.
❤️ In Relationships
The impact of our words and actions, even seemingly small ones, can create a 'tumultuous sound' that resonates deeply within others. Whether intended to demoralize or inspire, our communication carries potent psychological weight. This verse serves as a reminder to be mindful of the profound psychological effect our expressions have on those around us, urging us to use our voice wisely and powerfully.
When to Chant/Recall This Verse
Solves These Life Problems
Key Message in One Line
“The assertive projection of unified power and resolve can profoundly impact the morale of adversaries, reverberating deeply through their psyche and setting the tone for subsequent events.”
🕉️ Council of Sages
Compare interpretations from revered Acharyas and scholars
🌍 English Interpretations
Swami Sivananda
1.19 सः that? घोषः uproar? धार्तराष्ट्राणाम् of Dhritarashtras party? हृदयानि hearts? व्यदारयत् rent? नभः sky? च and? पृथिवीम् earth? च and? एव also? तुमुलः tumultuous? व्यनुनादयन् resounding.No Commentary.
Shri Purohit Swami
1.19 The tumult rent the hearts of the sons of Dhritarashtra, and violently shook heaven and earth with its echo.
Dr. S. Sankaranarayan
1.19. Revibrating in both the sky and the earth, the tumultuous sound shattered the hearts of Dhrtarastra's men.
Swami Adidevananda
1.19 And that tumultuous uproar, resounding through heaven and earth, rent the hearts of Dhrtarastra's sons.
Swami Gambirananda
1.19 That tremendous sound pierced the hearts of the sons of Dhrtarastra as it reverberated through the sky and the earth.
🇮🇳 Hindi Interpretations
Swami Chinmayananda
।।1.19।। 14वें श्लोक से संजय पाण्डवों की सेना का विस्तृत वर्णन करता है। उसका यह विशेष प्रयास है कि किसी प्रकार धृतराष्ट्र पाण्डव सेना की श्रेष्ठता समझ सकें और युद्ध के विनाशकारी परिणामों को समझ कर इस भ्रातृहन्ता युद्ध को रोकने का आदेश भेजें।
Swami Ramsukhdas
1.19।। व्याख्या --'स घोषो धार्तराष्ट्राणां ৷৷. तुमुलो व्यनुनादयन्'-- पाण्डव-सेनाकी वह शंखध्वनि इतनी विशाल, गहरी, ऊँची और भयंकर हुई कि उस (ध्वनि-प्रतिध्वनि-) से पृथ्वी और आकाशके बीचका भाग गूँज उठा। उस शब्दसे अन्यायपूर्वक राज्यको हड़पनेवालोंके और उनकी सहायताके लिये (उनके पक्षमें) खड़े हुए राजाओंके हृदय विदीर्ण हो गये। तात्पर्य है कि हृदयको किसी अस्त्र-शस्त्रसे विदीर्ण करनेसे जैसी पीड़ा होती है वैसी ही पीड़ा उनके हृदयमें शंखध्वनिसे हो गयी। उस शंखध्वनिने कौरवसेनाके हृदयमें युद्धका जो उत्साह था बल था, उसको कमजोर बना दिया जिससे उनके हृदयमें पाण्डव-सेनाका भय उत्पन्न हो गया। सञ्जय ये बातें धृतराष्ट्रको सुना रहे हैं। 'धृतराष्ट्रके सामने ही सञ्जयका धृतराष्ट्र के पुत्रों अथवा सम्बन्धियोंके हृदय विदीर्ण कर दिये' ऐसा कहना सभ्यतापूर्ण और युक्तिसंगत नहीं मालूम देता। इसलिये सञ्जयको 'धार्तराष्ट्राणाम्' न कहकर 'तावकीनानाम्'(आपके पुत्रों अथवा सम्बन्धियोंके--ऐसा) कहना चाहिये था; क्योंकि ऐसा कहना ही सभ्यता है। इस दृष्टिसे यहाँ 'धार्तराष्ट्राणाम्' पदका अर्थ जिन्होंने अन्यायपूर्वक राज्यको धारण किया (टिप्पणी प0 15.1)--ऐसा लेना ही युक्तिसंगत तथा सभ्यतापूर्ण मालूम देता है। अन्यायका पक्ष लेनेसे ही उनके हृदय विदीर्ण हो गये--इस दृष्टिसे भी यह अर्थ लेना ही युक्तिसंगत मालूम दे���ा है। यहाँ शङ्का होती है कि कौरवोंकी ग्यारह अक्षौहिणी (टिप्पणी प0 15.2) सेनाके शंख आदि बाजे तो उनके शब्दका पाण्डव-सेनापर कुछ भी असर नहीं हुआ, पर पाण्डवोंकी सात अक्षौहिणी सेनाके शंख बजे तो उनके शब्दसे कौरवसेनाके हृदय विदीर्ण क्यों हो गये? इसका समाधान यह है कि जिनके हृदयमें अधर्म, पाप, अन्याय नहीं है अर्थात् जो धर्मपूर्वक अपने कर्तव्यका पालन करते हैं, उनका हृदय मजबूत होता है, उनके हृदयमें भय नहीं होता। न्यायका पक्ष होनेसे उनमें उत्साह होता है ,शूरवीरता होती है। पाण्डवोँने वनवासके पहले भी न्याय और धर्मपूर्वक राज्य किया था और वनवासके बाद भी नियमके अनुसार कौरवोंसे न्यायपूर्वक राज्य माँगा था। अतः उनके हृदयमें भय नहीं था, प्रत्युत उत्साह था, शूरवीरता थी। तात्पर्य है कि पाण्डवोंका पक्ष धर्मका था। इस कारण कौरवोंकी ग्यारह अक्षौहिणी सेनाके बाजोंके शब्दका पाण्डव-सेनापर कोई असर नहीं हुआ। परन्तु जो अधर्म, पाप, अन्याय आदि करते हैं, उनके हृदय स्वाभाविक ही कमजोर होते हैं। उनके हृदयमें निर्भयता निःशङ्कता नहीं रहती। उनकी खुदका किया पाप, अन्याय ही उनके हृदयको निर्बल बना देता है। अधर्म अधर्मीको खा जाता है। दुर्योधन आदिने पाण्डवोंको अन्यायपूर्वक मारनेका बहुत प्रयास किया था। उन्होंने छलकपटसे अन्यायपूर्वक पाण्डवोंका राज्य छीना था और उनको बहुत कष्ट दिये थे। इस कारण उनके हृदय कमजोर, निर्बल हो चुके थे। तात्पर्य है कि कौरवोंका पक्ष अधर्मका था। इसलिये पाण्डवोंकी सात अक्षौहिणी सेनाकी शंख-ध्वनिसे उनके हृदय विदीर्ण हो गये, उनमें बड़े जोरकी पीड़ा हो गयी। इस प्रसंगसे साधकको सावधान हो जाना चाहिये कि उसके द्वारा अपने शरीर, वाणी, मनसे कभी भी कोई अन्याय और अधर्मका आचरण न हो। अन्याय और अधर्मयुक्त आचरणसे मनुष्यका हृदय कमजोर, निर्बल हो जाता है। उसके हृदयमें भय पैदा हो जाता है। उदाहरणार्थ, लंकाधिपति रावणसे त्रिलोकी डरती थी। वही रावण जब सीताजीका हरण करने जाता है तब भयभीत होकर इधर-उधर देखता है (टिप्पणी प0 16) । इसलिये साधककोचाहिये कि वह अन्याय--अधर्मयुक्त आचरण कभी न करे।सम्बन्ध--धृतराष्ट्रने पहले श्लोकमें अपने और पाण्डुके पुत्रोंके विषयमें प्रश्न किया था। उसका उत्तर सञ्जयने दूसरे श्लोकसे उन्नीसवें श्लोकतक दे दिया। अब सञ्जय भगवद्गीताके प्राकट्यका प्रसङ्ग आगेके श्लोकसे आरम्भ करते हैं।
Swami Tejomayananda
।।1.19।।वह भयंकर घोष आकाश और पृथ्वी पर गूँजने लगा और उसने धृतराष्ट्र के पुत्रों के हृदय विदीर्ण कर दिये।
📜 Sanskrit Commentaries
Sri Madhavacharya
।।1.19।।Sri Madhvacharya did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.11.
Sri Anandgiri
।।1.19।।तैस्तै राजभिः शङ्खानापूरयद्भिरापादितो महान्घोषस्तुमुलोऽतिभैरवो नभश्चान्तरिक्षं पृथिवीं च भुवनं लोकत्रयं सर्वमेव विशेषेणानुक्रमेण नादयन्नादयुक्तं कुर्वन् धार्तराष्ट्राणां दुर्योधनादीनां हृदयान्यन्तःकरणानि व्यदारयद्विदारितवान्। युज्यते हि तत्प्रेरितशङ्खघोषश्रवणान्त्रैलोक्याक्रोशे तमुपशृण्वतां तेषां हृदयेषु दोधूयमानत्वम्। तदाह स घोष इति।
Sri Vallabhacharya
।।1.15 1.19।।ततो युधिष्ठिरभीमादयश्च पृथक्पृथक् शङ्खान् दध्मुः। स घोषः दुर्योधनादिहृदयानि बिभेद।
Sridhara Swami
।।1.19।। स च शङ्खानां नादस्त्वदीयानां महाभयं जनयामासेत्याह स घोष इति। धार्तराष्ट्राणां त्वदीयानां हृदयानि विदारितवान्। किं कुर्वन्। नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्।